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सिहावा से निकलकर राजिम में महानदी जब पैरी और सोढुल नदियों के जल को ग्रहण करती है, तब एक विशाल रूप धारण कर चुकी होती है। ऐतिहासिक नगरी आरंग और सिरपुर में इसका रूप विकराल हो जाता है और यहीं से दक्षिण से उत्तर के बजाए पूर्व दिशा में बहने लगती है।
संबलपुर जिले में प्रवेश के साथ ही यह छत्तीसगढ़ से विदा लेती है। महानदी अपना आधे से अधिक रास्ता छत्तीसगढ़ में ही तय करती है। सिहावा से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरने तक महानदी लगभग 855 किमी की दूरी तय करती है। महानदी पर बने बांधों में रुद्री, गंगरेल तथा हीराकुंड प्रमुख हैं।
अत्यंत प्राचीन होने के कारण महानदी का इतिहास पुराण श्रेणी का है। ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार महानदी और उसकी सहायक नदियां प्राचीन शुक्लमत पर्वत से निकली हैं। महाभारतकाल में महानदी के तट पर आर्यों का निवास था। रामायण काल में भी इक्ष्वांकु वंश के नरेशों ने महानदी के तट पर अपना राज्य स्थापित किया था।
पुराने समय में महानदी आवागमन का प्रमुख साधन थी। नाव के द्वारा लोग महानदी के माध्यम से यात्रा करते थे। इतिहासकार उल्लेख करते हैं कि पहले इस नदी के जलमार्ग से कलकत्ता तक वस्तुओं का आयात-निर्यात हुआ करता था। छत्तीसगढ़ में उत्पन्न होने वाली अनेक वस्तुओं को महानदी और उसकी सहायक नदियों के मार्ग से समुद्र तट के बाजारों तक भेजा जाता था।
गिब्सन नामक अंग्रेज विद्वान ने लिखा था कि संबलपुर के निकट हीराकूद अर्थात हीराकुंड नामक स्थान एक छोटा-सा द्वीप है। यहां हीरा मिला करता था। इन हीरों की रोम में बड़ी खपत थी। महानदी में रोम के सिक्के पाए जाने को वे इस तथ्य से जोड़ते हैं। प्रसिद्ध चीनी दार्शनिक ह्वेनसांग ने भी अपनी यात्रा में लिखा था कि मध्य प्रदेश से हीरा लेकर लोग कलिंग में बेचा करते थे। यह मध्य प्रदेश संबलपुर ही था।
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